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सनातन धर्म में मित्र और मित्रता का उत्तम स्थान का वर्णन

    



सन्तों का मन्तव्य है, "पापान्निवारयति योजयते हिताय, गुह्यं निगुह्यति गुणान् प्रकटीकरोति । आपदगतं न ज जहाति ददाति काले, सन्मित्र लक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः।।" जो पाप कर्मों से बचाये,कल्याणकारी कार्यों में लगाये,गुप्त बातों को छिपाये,समाज के सम्मुख गुणों को प्रकट करे,आपत्ति के समय साथ न छोड़े,समय पड़ने पर आर्थिक मदद दे,सन्तों के अनुसार वास्तविक मित्र वही है।

राम चरित मानस किष्किन्धाकाण्ड़ में संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने मित्र को पारिभाषित करते हुए कहा है,
"जे न मित्र दुख होहिं दुखारी,तिन्हहिं विलोकत पातक भारी।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना,मित्रक दुख रज मेरु समाना।" We love your comments and suggestions. Please visit our website for travel blogs and other related topics. Anuj Mishra https://www.drifterbaba.com/ Whatsapp / Call: +91 9900144384 #mitra #mitrata #dosti

Date:  07 Mar 2022



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